महात्मा गांधी की आत्मकथा

जब गांधी जी ने भाई का कड़ा चोरी कर उतारा था कर्जा

By: Satish Patel

महात्मा गांधी की आत्मकथा


सत्य और अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में एक वैष्णव हिंदू परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम पुतली बाई और पिता का नाम करमचंद गांधी था। उनके परिवार में हिंदू संस्कृति के सभी कर्मकांड प्रचलित थे। उनकी माता धार्मिक महिला और पिता पेशे से दीवान थे।

महात्मा गांधी की आत्मकथा


गांधी के जीवन की गई ऐसी घटनाएं रही जिनका जिक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘सत्य व उसके प्रयोग’में किया है। इस लेख के जरिए आगे की स्लाइड में पढ़िए गांधी जी के जीवन से जुड़े कुछ रोचक किस्से।

15 साल की उम्र में हो गया था कर्जा


गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में एक चोरी करने की एक घटना का वर्णन किया है, उन्होंने इसमें लिखा है कि 15 साल की उम्र में मेरे पर कुछ कर्जा हो गया, इसे चुकाने के लिए उन्होंने भाई के हाथ में पहने हुए सोने के कड़े से एक तोला सोना कटवाकर सुनार को बेचकर कर्जा चुकाया था।

15 साल की उम्र में हो गया था कर्जा


इसके बाद यह बात उनके लिए असहनीय हो गई। उन्हें लगा कि यदि पिताजी से इस चोरी की बात को बता देंगे, तो ही उनका मन शांत होगा। लेकिन पिता के सामने यह बताने की उनकी हिम्मत नहीं हुई और उन्होंने एक पत्र के जरिए पिता को सारी बात बता दी।

जो अच्छा नहीं लगा उसे याद ही नहीं रखा


गांधीजी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वे जो कुछ भी पढ़ते थे, उसमें से उन्हें जो अच्छा और उपयोगी लगता था, उसे ही वह याद रखते थे। लेकिन जो उन्हें पसन्द नहीं आता था, उसे वे भूल जाते थे या भुला दिया करते थे।

जो अच्छा नहीं लगा उसे याद ही नहीं रखा


गांधीजी का यही स्वभाव आगे चलकर बुरा न देखना, बुरा न सुनना और बुरा न बोलना के रूप में गांधी जी के तीन बंदरों की तरह याद किया जाने लगा, लेकिन गांधीजी का अच्छे को चुनने और बुरे को छोड़ देने का स्वभाव 13 और 14 साल जैसी किशोरावस्था में भी था।

जब कस्तूरबा गांधी से बंद हो गई बोलचाल


गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि जब मेरी शादी हुई तो एक किताब में मैंने पढ़ा कि एक पत्नी-व्रत पालना पति का धर्म है। इससे यह भी समझ में आ गया कि दूसरी स्त्री से संबंध नहीं रखना चाहिए। लेकिन इन सदविचारों का एक बुरा परिणाम भी निकला।

जब कस्तूरबा गांधी से बंद हो गई बोलचाल


मैं यह मानने लगा कि पत्नी को भी एक-पति-व्रत का पालन करना चाहिए। इस विचार के कारण मैं ईष्र्यालु पति बन गया और मैं पत्नी की निगरानी करने लगा। मैं सोचने लगा कि मेरी अनुमति के बिना वह कहीं नहीं जा सकती।

जब कस्तूरबा गांधी से बंद हो गई बोलचाल


यह चीज हम दोनों के बीच झगड़े की जड़ बन गई। कस्तूरबा ऐसी कैद सहन करने वाली नहीं थी। जहां इच्छा होती वह वहां मुझसे पूछे बिना जाती। इससे हम दोनों के बीच बोलचाल तक बंद हो गई।

श्रवण कुमार से हुए प्रभावित


गांधी जी ने आत्मकथा में यह भी बताया है कि वह श्रृवण की पितृ भक्ति से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने लिखा कि उन्हें पढ़ने लिखने का तो बहुत ज्यादा शौक नहीं था। एक बार उन्होंने ‘श्रृवण पितृ भक्ति नाटक’ नामक पुस्तक पढ़ी। यह पुस्तक उनके पिताजी की थी।

श्रवण कुमार से हुए प्रभावित


वे उस पुस्तक को पढ़कर श्रृवण के पात्र से इतना प्रभावित हुए कि जिंदगी भर श्रृवण की तरह मातृ-पितृ भक्त बनने की कोशिश करते रहे। साथ ही उन्होंने अपने संपर्क में आने वाले सभी लोगों को ऐसा बनाने का भी प्रयास किया।

जीवनभर बने रहे सत्य के खोजी


गांधी जी ने बचपन में ‘सत्यवादी राजा हरीशचन्द्र’ का एक दृश्य नाटक देखा। उस नाटक के राजा हरीशचन्द्र के पात्र से वह इतना प्रभावित हुए कि जिंदगी भर राजा हरीशचन्द्र की तरह सत्य बोलने का व्रत ले लिया। उन्होंने समझ लिया था कि सत्य के मार्ग पर चलने से जीवन में कठिनाइयां आती हैं लेकिन सत्य का मार्ग छोड़ना नहीं चाहिए।

जीवनभर बने रहे सत्य के खोजी


बालपन में ही सत्यानवेषण से संबंधित उनके मन पर पड़े हुए राजा हरीशचन्द्र के प्रभाव ने जीवनभर गांधी जी को सत्य का खोजी बनाए रखा।

गांधीजी के लिए ‘सत्य’एक प्रकार का शौक


गांधीजी खुद को हमेशा सत्य का पुजारी कहते थे। उनका अनुभव था कि सत्य के पक्ष में खड़े रहना हमेशा आसान नहीं होता लेकिन किसी भी परिस्थिति में सत्य के पक्ष में खड़े रहना ही सत्य की पूजा है। गांधीजी के लिए ‘सत्य’ एक प्रकार का शौक था, जिसे वे जीवनभर अपने मनोरंजन की तरह प्रयोग में लेते रहे।

गांधीजी के लिए ‘सत्य’एक प्रकार का शौक


उन्हें सत्य के साथ खेलने में मजा आता था। जब लोग अपनी किसी गलती को छिपाने के लिए झूठ बोलकर बचना चाहते थे, तब गांधीजी उसी गलती को सच बोलकर होने वाली प्रतिक्रिया को देखने में ज्यादा उत्सुक दिखाई पड़ते थे।

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